"फिर दोनों की शादी हो गयी , फिर क्या हुआ ...शादी की बाद की कहानी कोई नही बताता" .... यह जुमला अब पुराना हो जाएगा ..क्योकि शादीi के बाद भी कहानी बनती तो है ... वह कहानी जो जानी पहचानी है ..जो प्यार की दुश्मन है ..जो बोरिंग जिंदगी से शुरु होती है ...और प्यार के खात्मे पर ख़तम होती है , यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है ..जो प्यार के ख़त्म होने और फिर से प्यार होने के फलसफे को बयाँ करती है |
निर्देशक आनंद एल रॉय और लेखन हिमांशु शर्मा की जोड़ी फिर एक ऐसी फिल्म का मंचन करती है की आप पहली फ्रेम से आखरी फ्रेम तक परदे से कुछ चिपके चिपके नज़र आते हैं | फिल्म तनु वेड्स मनु returns की कहानी में कहने के लिए कुछ नही है ...कहानी वही है जो नाम से ही पता चल जाती है ...अब अगर नाम तनु वेड्स मनु है तो कहानी में तनु की शादी तो राजा से होने से रही | वही होना है जो फिल्म का टाइटल कहता है , पर कैसे होना है यह दिखाना अपने आप में कला है और इसी बात के कलाकार है आनद एल राय |
फिल्म की कहानी शुरू होती है शादी के ४ साल बाद से जब शादी में सिर्फ झंझट और लड़ाई झगडा ही बचता है | तनु उर्फ़ तनूजा त्रिवेदी ( कंगना रानाउत) मनु उर्फ़ मनोज शर्मा से नाराज़ हो वापस कानपुर आ जाती है | इस नाराजगी की लड़ाई में पप्पी ( दीपक डोबरियाल ) जहाँ मन्नू भैया का साथ देते है तो वहीँ कंधे के रूप में तन्नु को मिलता है चिंटू ( मोहम्मद जीशान अयूब ) का साथ ..फिर कहानी में आता है ट्विस्ट और एक और राजा अवस्थी ( जिम्मी शेरगिल ) आ जाते हैं वहीँ कुसूम के रूप में कंगना रानाउत की फिर से entry होती है | अब ये कहानी कुछ रोचक मोड़ लेती हुई अपने नाम को पूरा करने निकल पड़ती है |
फिल्म की कहानी पर ज्यादा कुछ कहने के लिए कुछ नहीं है ,पर पटकथा फिर भी अच्छी कही जा सकती है , संवाद (dialogue) उससे भी ज्यादा अच्छे और दमदार हैं और अभिनय (एक्टिंग) तो अपने चरम पर है | कंगना रानाउत ने अपनी अदाकारी से सबको पानी पिलाया है , यह कहना सही नहीं होगा की बाकि सब की एक्टिंग कमजोर है , पर कंगना ने जो अभिनय दिखाया है ख़ास तौर पर कुसुम के किरदार में उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम लगती है | फिल्म के क्राफ्ट के नज़रिए से यह पार्ट १ से थोड़ी कमजोर है पर मनोरंजन के तराजू पर इसका पलड़ा कही भी नीचे नहीं झुकता है |
गीत -संगीत की बात की जाए तो ठीक ही कहा जाएगा .. ना बहुत अच्छा ना बहुत बुरा ...पर इसमें आपको कही वडाली बंधुओ की कमी लग सकती है | यहाँ पर तुलना अगर पार्ट १ से ना की जाए तो फिर इस शिकायत का कोई मतलब नही | एडिटिंग मख्खन की तरह लगती है ... पर सच्चाई तो यह है की हंसने और ठहाके लगाने में इस और ध्यान ही नहीं जाता |
कुल मिला कर कहा जाए तो आनद एल राय और हिमांशु शर्मा ने इस फिल्म के जरिये अब खुद को एक अलग मुकाम दे दिया है | वैसे इससे पहले भी इन्हें किसी पिछड़े क्रम में नही रखा जा सकता था ,पर यह फिल्म यह साबित करती है की .. सफलता नसीब का खेल हो सकती है ..पर अच्छे काम चमत्कार से पैदा नहीं होते ... उनके लिए मेहनत लगती है जो इस फिल्म में दिखाई देती है ... खास तौर पर फिल्म के scene की detailing जबरदस्त है | जब लगि आवौं सीतहि देखि , होइही काजू मोहि हर्ष बिसेषी|| सुंदर काण्ड के इस चौपाई की खूबसूरती अपने आप में बढ़ जाती है जब आप सामने से तनु को आते हुए देखते हैं , रावन कहे जाने वाले राजा अवस्थी से सामने लेखक ने सीता के किरदार को सुन्दरकाण्ड की एक चौपाई से गढ़ दिया | एक ऐसी सीता जिसमे रामायण की सीता को कोई क्वालिटी ही नहीं है ..पर यह फिल्म की खूबसूरती और कलमकार की क्रिएटिविटी की कहानी है |
यह फिल्म एक फुल फ़्लैश entertainment की सौगात है , जो दर्शको को सिनेमा हाल तक खीचने में कामयाब रखेगी | फिल्म को सिर्फ इसलिए देखना की की जो पता है वो कैसे होगा और यह suspense बना रहना ही इस फिल्म की खासियत है , मुझे यहाँ पर संस्कृत की एक सूक्ति याद आती है " रसात्मक वाक्यं काव्यं " ...यानि रस से भरा वाक्य ही काव्य या कविता है ..इसे अगर थोडा बदल दिया जाए तो कहा जा सकता है " रसात्मक फिल्मम तनु वेड्स मनु रिटर्न्स "