"एक बार देखा है दूसरी बार देखने की तमन्ना है " दस्ताने हातिमताई का यह पहला प्रश्न विशाल भारद्वाज की "सात खून माफ़ " के लिए बिलकुल सटीक बैठता है ,बस इस जुमले को थोडा सा बदलना पड़ेगा कि "एक बार शादी की है दुसरी बार करने की तमन्ना है "। सात खून माफ़ एक ऐसे ही फलसफे की कहानी है जिसमे सुजाना (प्रियंका चौपडा ) एक के बाद एक करके सात शादियाँ करती है इस यकीं के साथ की यही उसका सच्चा प्यार है और अपने छः पतियों को एक एक करके मौत के घाट उतार देती है क्योकि वह हर बार गलत थी । छः खून तो वो प्रत्यक्ष रूप से करती है परन्तु सातवा नहीं अब यह सातवा खून कोन सा है इसका जवाब फिल्म के दर्शक के विवेक और कल्पना पर छोड़ा गया है ।
मकबूल , ओमकारा, कमीने फेम निर्देशक विशाल भारद्वाज का यह प्रयास थोडा अलग तरह का है, वेसे तो फिल्म रस्किन बांड की कहानी सुसाना' स सेवन हसबेंड पर आधारित है परन्तु प्रस्तुतीकरण से इसे एक अलग आयाम देने की कोशिश की है । फिल्म में निर्देशक ने जहा छोटी -छोटी बातो का ख्याल रखा है वंही कुछ बड़ी गलतिया भी दिखाई देती है जेसे सुजाना की बड़ती उम्र को मेक-अप के जरिये दिखाया गया है परन्तु एक द्रश्य में उम्रदराज दिखने के बाद अगले ही द्रश्य में वह वह वापस कमसीन दिखने लगती है| अपनी पाँचवी शादी में प्रियंका ज्यादा बूढी दिखी है तो उस सीन के दो सीन बाद अपनी छटवी शादी में थोड़ी सी जवान । ऐसे ही पहले पति अड्विक रोडिक (नील नित्रिन मुकेश ) के अंतिम संस्कार के द्रश्य में चर्च के पादरी के पास एक लड़का खड़ा होता है ,वही लड़का करीब १५ साल बाद सुजाना के पाँचवे पति कीमती लाल ( अन्नू कपूर) की मौत के वक्त भी वाणी खड़ा होता है और उतना ही बड़ा रहता है जितना की १५ साल पहले था ।
अभिनय के लिहाज़ से सभी कलाकारों ने उम्दा काम किया है, प्रियंका चौपडा का काम लाजवाब है । इरफ़ान खान और नसरुदीन शाह तो अभिनेता है ही वंही अन्नू कपूर ने भी खुद को टक्कर का साबित किया है । उषा उत्थप, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम ने भी अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है । संगीत के लिहाज़ से सब कुछ जानदार है- डार्लिंग ,ओ मामा , बेकरण ,आवारा ,येशु आदि सब गाने अलग अलग ज़ायके की तरह है जिसे गीतकार गुलजार और अजिंक्य अय्यर ने बड़े ही खूबसूरत शब्दों से परोसा है ।
फिल्म का अपना एक टेस्ट है । यह न तो मडर मिस्ट्री है न ही सायको स्टोरी यह एक थ्रिल है जिसे वास्तविकता के साथ पेश करने की कोशिश की गयी है । प्रस्तुतीकरण बहुआयामी न होकर थोडा उबाऊ है । सुजाना का चरित्र समझने में थोड़ी दिक्कत है | परन्तु शायद यही विशाल भारद्वाज का तरीका है अपनी कहानी को पेश करने का ।
अब बॉक्स ऑफिस की रिपोर्ट ही फैसला करेगी की जनता ने विशाल भारद्वाज के सात खून माफ़ किये या नहीं
आपके सुझाव के इंतजार में .....................लकुलीश शर्मा