Sunday, August 15, 2010
"पीपली लाइव" मीडिया की थोथी प्रस्तुतियों को करारा तमाचा
" स्वानों को मिलता वस्त्र दूध , भूखे बालक अकुलाते है
माँ की छाती से चिपक ठिठुर जाड़े की रात बिताते है
युवती के श्रद्धा वसन बेच जहाँ ब्याज चुकाए जाते है
मालिक वंहा तेल- फफुलो पर पानी सा द्रव्य बहाते है "
रामधारी सिंह ' दिनकर ' की यह पंक्तिया करीबन ७० वर्ष पुरानी है पर भारतीय ग्रामीण परिवेश में इसकी प्रासंगिकता जस की तस है| इस ग्रामीण दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षण का सफलतम प्रयास निर्माता- अमीर खान और निर्देशक- अनुषा रिज़वी ने फिल्म 'पीपली लाइव' में बखूबी किया है
फिल्म कहानी है नत्था (ओमकार दास) और बुधिया (रघुवीर यादव) नामक दो भाइयो की जिनकी जमीन क़र्ज़ न चूका पाने से नीलाम होने की नोबत पर आ जाती है | ऐसे में नत्था इस आशा में आत्म-हत्या करने का फैसला ले लेता है की सरकार उसके परिवार वालो को मुआवजा देगी | उसकी यह बात मीडिया में फैल जाती है और उसकी जिन्दगी प्राइम-टाइम टेलीकास्ट और ब्रेकिंग न्यूज़ का हिस्सा बन जाती है, बस यही से शुरू होता है टी.वी. चैनलों के टी.आर.पी(टेलिविज़न रेटिंग पॉइंट ) का गन्दा खेल , राजनीतिक अखाड़ेबाज़ी की नोटंकी और शासन के भीतर का छुपा गन्दा सच जो शर्मनाक तरीके से सामने आता है| इन सब नौटंकियो में नत्था की परेशानिया लुप्त हो कर रह जाती है ।
फिल्म में किसानो की आर्थिक स्थिति ,इलेक्ट्रोनिक मीडिया और आज की सड़ी-गली राजनीति पर करारा व्यंग्य किया गया है| ऐसा लगता है मानो मुंशी प्रेम चन्द्र की कहानी को हरिशंकर परसाई के व्यंग्य में परोसा गया हो । पात्रो के नाम हरिया , महतो,बुधिया आदि मुंशी प्रेमचन्द्र की कहानियो की याद दिलाते है |फिल्म में अपशब्दों के प्रयोग के कारण फिल्म को व्यसक प्रमाण पत्र ( A certificate) दिया गया है | ये अपशब्द सिर्फ हास्य ही पैदा नहीं करते बल्कि कुछ संवादों पर यह इतने सटीक बैठे है की ऐसा लगता है मानो इससे अच्छा यहाँ कुछ हो ही नहीं सकता था । अभिनय के तराजू पर हर पात्र ने खुद को टक्कर का साबित किया है |
फिल्म में नत्था की हालत की आंशिक जिम्मेदारी आम आदमी पर भी डाली गयी है| जो सिर्फ मनोरंजन और सनसनी पर ही भरोसा करता है और प्रतिस्पर्धा में खड़े न्यूज़ चेनल को इस बात के लिए विवश करता है की वह लगातार सिर्फ मनोरंजन ही परोसता रहे ;चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो । तो अब जब आप पीपली लाइव देखे तो अपने आप से यह सवाल जरुर करियेगा की निर्देशक- अनुषा रिज़वी की इस बात में कितनी सच्चाई है |
.....................................आप के सुझावों का इंतजार रहेगा ..........लकुलीश शर्मा
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muje film itni achi nahi lagi. par media ka sahi room dikhai deta hai
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