Saturday, February 19, 2011

"सात खून माफ़ "-हातिमताई का पहला सवाल


"एक बार देखा है दूसरी बार देखने की तमन्ना है " दस्ताने हातिमताई का यह पहला प्रश्न विशाल भारद्वाज की "सात खून माफ़ " के लिए बिलकुल सटीक बैठता है ,बस इस जुमले को थोडा सा बदलना पड़ेगा कि "एक बार शादी की है दुसरी बार करने की तमन्ना है "। सात खून माफ़ एक ऐसे ही फलसफे की कहानी है जिसमे सुजाना (प्रियंका चौपडा ) एक के बाद एक करके सात शादियाँ करती है इस यकीं के साथ की यही उसका सच्चा प्यार है और अपने छः पतियों को एक एक करके मौत के घाट उतार देती है क्योकि वह हर बार गलत थी । छः खून तो वो प्रत्यक्ष रूप से करती है परन्तु सातवा नहीं अब यह सातवा खून कोन सा है इसका जवाब फिल्म के दर्शक के विवेक और कल्पना पर छोड़ा गया है ।

मकबूल , ओमकारा, कमीने फेम निर्देशक विशाल भारद्वाज का यह प्रयास थोडा अलग तरह का है, वेसे तो फिल्म रस्किन बांड की कहानी सुसाना' स सेवन हसबेंड पर आधारित है परन्तु प्रस्तुतीकरण से इसे एक अलग आयाम देने की कोशिश की है । फिल्म में निर्देशक ने जहा छोटी -छोटी बातो का ख्याल रखा है वंही कुछ बड़ी गलतिया भी दिखाई देती है जेसे सुजाना की बड़ती उम्र को मेक-अप के जरिये दिखाया गया है परन्तु एक द्रश्य में उम्रदराज दिखने के बाद अगले ही द्रश्य में वह वह वापस कमसीन दिखने लगती है| अपनी पाँचवी शादी में प्रियंका ज्यादा बूढी दिखी है तो उस सीन के दो सीन बाद अपनी छटवी शादी में थोड़ी सी जवान । ऐसे ही पहले पति अड्विक रोडिक (नील नित्रिन मुकेश ) के अंतिम संस्कार के द्रश्य में चर्च के पादरी के पास एक लड़का खड़ा होता है ,वही लड़का करीब १५ साल बाद सुजाना के पाँचवे पति कीमती लाल ( अन्नू कपूर) की मौत के वक्त भी वाणी खड़ा होता है और उतना ही बड़ा रहता है जितना की १५ साल पहले था ।

अभिनय के लिहाज़ से सभी कलाकारों ने उम्दा काम किया है, प्रियंका चौपडा का काम लाजवाब है । इरफ़ान खान और नसरुदीन शाह तो अभिनेता है ही वंही अन्नू कपूर ने भी खुद को टक्कर का साबित किया है । उषा उत्थप, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम ने भी अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है । संगीत के लिहाज़ से सब कुछ जानदार है- डार्लिंग ,ओ मामा , बेकरण ,आवारा ,येशु आदि सब गाने अलग अलग ज़ायके की तरह है जिसे गीतकार गुलजार और अजिंक्य अय्यर ने बड़े ही खूबसूरत शब्दों से परोसा है ।
फिल्म का अपना एक टेस्ट है । यह न तो मडर मिस्ट्री है न ही सायको स्टोरी यह एक थ्रिल है जिसे वास्तविकता के साथ पेश करने की कोशिश की गयी है । प्रस्तुतीकरण बहुआयामी न होकर थोडा उबाऊ है । सुजाना का चरित्र समझने में थोड़ी दिक्कत है | परन्तु शायद यही विशाल भारद्वाज का तरीका है अपनी कहानी को पेश करने का ।

अब बॉक्स ऑफिस की रिपोर्ट ही फैसला करेगी की जनता ने विशाल भारद्वाज के सात खून माफ़ किये या नहीं

आपके सुझाव के इंतजार में .....................लकुलीश शर्मा

Sunday, February 6, 2011

जिन्दगी का अजीब फलसफा-"ये साली जिंदगी "


क्या है ये जिंदगी
बड़ा अजीब सवाल है ?
मंजिल गुमनाम है शायद
या राहे अनजान है। क्या है ये जिंदगी ...

जिन्दगी एक अजीब फलसफा है | दुनिया में कोई जिंदगी से नाखुश है , कोई हैरान , तो कोई परेशान।
इसी परेशानी , हैरानी और उलझनों को अपने अंदाज में पेश किया है निर्माता प्रकाश झा और निर्देशक सुधीर मिश्र ने अपनी फिल्म ये साली जिंदगी में|

फिल्म की कहानी फिल्म के किरदारों की जिंदगी के अनचाहे समीकरणों पर घुमती है| फिल्म में अरुण (इरफ़ान खान ) एक चार्टेड एकाउंटेंट है जो मेहता (सौरभ शुक्ला )की एक फ़र्म में काम करता है । काम के सिलसिले में उसकी मुलाकात प्रीति(चित्रांगदा सिंह) से हो जाती है और अरुण को प्रीति से प्यार हो जाता है । दूसरी और कुलदीप (अरुणोदय सिंह) की अपनी अलग कहानी है वह एक गुंडा है जो तिहारजेल में सजा काट कर अपनी पत्नी शांति (अदिति राव ) के साथ जिंदगी बिताना चाहता है ,पर उससे पहले एक बड़ा हाथ भी मारना चाहता है । कहानी में दो डान;- बड़े (यशपाल ) और छोटे (प्रशांत नारायण), एक अमीरजादा श्याम (विपुल गुप्ता ) और इस्पेक्टर (सुशांत )सिंह भी है जो पूरी फिल्म के घटना क्रम को निर्देशित करते है। फिल्म में अरुण अपने प्यार के चक्कर में और कुलदीप अपने पैसे के चक्कर में एक षड़यंत्र में फसते चले जाते है और हर किरदार की जिंदगी में भूचाल आ जाता है और हर कोई कहता है "ये साली जिंदगी "

फिल्म में निर्देशन ,स्क्रीन प्ले ,डायलाग , पटकथा का दारोमदार सुधीर मिश्रा ने संभाला है । फिल्म के गीत लिखे है स्वानंद किरकिरे ने और संगीत मिशांत खान का है । संपादन अमित डी रस्तोगी ने किया है और सिनेमेटोग्राफी सचिन कुमार कृष्णन ने ।

फिल्म एक फुल टाइम इंटरटेनमेंट पैकेज है ,निर्देशन बढ़िया है पटकथा कसी हुई है ,डायलाग सटीक और लाजवाब ,गीत शानदार और संगीत गीत पर बिलकुल अनुकूल । फिल्म की कहानी इतनी तेज़ी से बदती है की संपादन की गलतियाँ पकड़ने का मोका ही नहीं मिलता। यह फिल्म पूरी तरह से वयस्क और रियलिटी फेक्टर के संवादों से भरी पड़ी है .गलियों का भरपूर उपयोग है और अश्लीलता का मीटर भी बड़ा हुआ है । अभिनय के पलड़े पर कोई किसी से हल्का नहीं है पर इरफ़ान खान ,सौरभ शुक्ल और सुशांत सिंह ने कमाल किया है ।
कही कही पर "ये साली जिंदगी " में " हजारो ख्वाईशे ऐसी" की झलक दिखाई देती है परन्तु प्रस्तुतीकरण ने इसका एक अलग आयाम बनाया है