"'मैनें तुझसे मोहब्बत की यह मेरा टेलेन्ट है।"
सिर्फ इतनी सी लाइन दिल को तसल्ली देने के लिए काफी है, ये आशिको का मिलाजुला दर्द है जिन्होंने प्यार तो किया पर प्यार पाया नहीं . फिल्म राँझना एक ऐसे आशिक की कहानी है जिसने सिर्फ प्यार किया और कुछ नहीं . राँझना कहानी है कुंदन(धनुष) नाम के एक लड़के की जो दक्षिण भारतीय ब्राह्मण है और काशी में रहता है वो वहां रहेने वाली एक मुसलमान लड़की जोया से प्यार करने लग जाता है ये प्यार की कहानी तब शुरू होती है जब वो सिर्फ ८ साल का है. बचपन की दहलीज़ से जवानी के उन्माद तक वो सिर्फ जोया का है . जोया ( सोनम कपूर) कुंदन से नहीं बल्कि अकरम (अभय देओल )से प्यार करती है .इस प्यार के चक्रव्यूह में प्यार को पाने और खोने की जद्दोजहत चलती रहती है और यह जद्दोजहत किसी आम प्रेम कहानी की तरह नहीं है ,जहाँ दो लड़के एक लड़की के लिए आपस में लड़ते हो ये जद्दोजहत तो सच्चे प्यार की तलाश और अपने प्यार को पाने की उम्मीद की है .फिल्म कई मोड़ लेती और एक ऐसे अंत पर पहुचती है जहां फिल्म के किरदारों के साथ साथ दर्शको की भी सिसकियाँ सुनाई देती है .
फिल्म का निर्देशन किया है तनू वेड्स मन्नू फेम आनंद एल राय ने, कहानी लिखी है हिमांशु शर्मा ने , संगीत की बागडोर संभाली है ए आर रहमान ने। फिल्म के निर्देशन की बात करें तो आनंद राय ने कमाल किया है। तनु वेड्स मन्नू से जो उम्मीदे जगी थी आनंद राय न सिर्फ उन उम्मीदों पर खरे उतरे बल्कि दो कदम आगे जा कर उन्होंने यह काम किया है। फिल्म कहने को सिर्फ १४० मिनिट की है पर फिल्म में एक एक फ्रेम इतने करीने से रखी गयी है की आपको लगता है जेसे आप न जाने कब से बैठ कर यह फिल्म देख रहें हो। हर फ्रेम से आप एक जुडाव, एक लगाव महसूस करते है। फिल्म में दिखाई गए शहर खुद को बयाँ करते है यह तो निर्देशक की खासियत भी है। फिल्म की छोटी छोटी बारीकियां दर्शको के अंतर्मन पर गहरा प्रभाव छोडती है . फिल्म में कहानी और निर्देशन के बाद अगर किसी और बात ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो है फिल्म के डॉयलाग . अभिनय की बात की जाये तो बिंदिया ( स्वरा भास्कर) , मुरारी ( मोहम्मद अयूब ) से लेकर अभय देओल , धनुष और सोनम सभी ने अपने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है पर खास तौर पर धनुष , मोहमद अयूब और स्वरा भास्कर ने अपने अपने किरदार में कमाल किया है . फिल्म का म्यूजिक ठीक ठाक की श्रेणी में रखा जा सकता है .संपादन (एडिटिंग) भी मक्खन की तरह से एक एक फ्रेम को आराम से आगे बढ़ाती जाती है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है की यह फिल्म एक ईमानदार प्रयास है , प्यार का, प्यार के इम्तेहान का और इस बात की सच्चाई का कि प्यार पाने का नहीं सिर्फ देने का नाम है। सिर्फ देने का . . . . .
आपके सुझावों के इंतजार में लकुलीश..........