Wednesday, December 7, 2011

वाय थिस कोलावारी दी


मेरा एक दोस्त अचानक मुझसे बोलने  लगा की दादा (प्यार से मुझ से छोटे दोस्त मुझे दादा कहते है  पर में कही से भी दादा नहीं लगता ) आप इस गाने को कैसे  पसंद कर सकते हो जो की पूरी तरह से बेसिर पैर का है |. उसकी बात एक तरह से सही भी थी, मै अक्सर आपने दोस्तों के बीच एक अच्छा समीक्षक बनने की कोशिश करता रहता था(पता नहीं मेरा यह गुमान कब जायेगा या फिर शायद सच में किसी दिन बन जाऊ ) और आज में ही एक ऐसे गाने की तारीफ कर रहा था जो एक समीक्षक के नज़रिए से पूरी तरह से भाषा के व्याकरण की ऐसी तेसी करने वाला होना चाहिए |  पर यहाँ मै दिमाग से नही बल्कि दिल से सोच रहा था | मेरे दिल को ये गाना पसंद था और .घर आकर मैंने इस बात पर दिमाग को भी लगा दिया की आखिर इस गाने में ऐसा क्या है जो लोगो को अपनी तरफ अट्रेक्ट कर रहा है |  बहुत सोचने के बाद मैंने  यह पाया की ये  एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो बचकानी है ,टूटी फूटी है ,सुसंस्कृत नही है और अंग्रेजी की ग्रामर का इतना भलता (अटपटा ) इस्तेमाल पर फिर भी इस गाने में एक बचपना है, मासूमियत है, भोलापन है , भाषा के बंधन से आजाद केवल भावनाए है जो संगीत के माध्यम में बह रही है| यह बिलकुल वैसा  है जेसे एक छोटे बच्चे की अजीब सी बोली जो मन को भा जाती है जिसके लिए उसका व्याकरण सम्मत न होना ही उसकी खूबी है  और यह खूबी  ही कोलावारी दी को इतना खास बना रही है |

इसके अलावा एक बात और है जिसने कोलावारी दी को "ड कोलावारी दी " बनाया  है और वह बात है कुछ नया स्वीकार करने  की हमारी प्रवत्ति |  हमेशा ५६ भोग खाने वाले के लिए खिचड़ी से बढ़िया व्यंजन  कोई और नहीं हो सकता | कभी कभी हम जानते है की जो हम कर रहे है वो सही नहीं है पर उस वक़्त वही करना अच्छा लगता है क्योंकी हमारे हाजमे की उस वक़्त की  मांग वही है|   यही हाल कोलावारी दी का भी है वो दाल, चावल, टमाटर, प्याज़, आलू , और मटर से सजी मसालेदार खिचड़ी है जो किसी के भी मुह में पानी ला देने के लिए काफी है | इस स्वाद पर कोई तर्क भारी नहीं पड़ सकता | .कभी..हिमेश रेशमिया ,अल्ताफ राजा के गानों पर भी इसी तरह का उन्माद दिखा था  वो अब बासी खिचड़ी है यह ताज़ी ताज़ी गरमारम खिचड़ी है  पर हां यह बात भी याद रखना पड़ेगी की खिचड़ी सिर्फ गर्म ही अच्छी लगती है तो थोड़े दिन जब तक माहोल गर्म है तब तक दिमाग  को साइड में रखकर गाते है | why this kolavari kolavari kolavari di ...why this kolavari kolavari di........धी धिन धिन..................आपकी प्रतिक्रियाओ के इंतजार में |

5 comments:

  1. tu Samajik muddo par bhi tippaniya kiya kar...variety milegi teri writing ko....Films k baare mein likhta hai...par film chahe alag alag ho...par hoti film he hia...isliye reviews b similar lagte hai....esa kuch likta rahega toh...padhne wale bhi double enjoy karenge.....accha likha hai:)

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  2. acha likha hai lucky
    lekin

    koi wajah nahi lagi eski samiksha karne ki
    aur ha
    (bhai kabhie apni tarif thudi kam kiya karo he he he)

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  3. azam sahab wajah kuchh bhi nahi hai baat sirf dil me thi to shabdko ke jariye blog par utar di ..aur rahi tarif karne ki baat to ager ye kaam koi aur kar de to me chhodu na :-)

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  4. Bhai zarori nahi ki kuch acha lagne ke piche koi logic ho....... ye dil kabhi b kisi b cheez ko pasand kar sakta he .

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  5. well its about timings...... kolaveri di is not soo amazing par logo k pas isk alawa koi aption bhi nahi h na .... par iska bhi waqt hai dost...just lik slumdog millionaire jayesa hal h.
    agar is time shila ya munni yage aye hote to shayad kolaveri ki bakhat nahi hoti.....aur wayese bhi gana agar fb pe a jaye to fir to bas.....fb ki maya.

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