Sunday, January 16, 2011

पैसा वसूल है - यमला पगला दीवाना


एक परिवार जो फिल्म की शुरवात में बिछड़ जाता है और आखिर में मिल जाता है " यह एक ऐसा विचार है जिसने हिंदी सिनेमा की कई ब्लाक बस्टर्ड फिल्म को रचा है और इसी लाइन को एक बार फिर कहानी बनाकर मसखरे अंदाज में भुनाया है निर्माता नितिन मनमोहन और निर्देशक समीर कार्निक ने अपनी फिल्म यमला पगला दीवाना में ।
फिल्म की कहानी के नाम पर परिवार के बिछड़ने की दास्ताँ है । बड़ा भाई परमवीर सिंह ( सनी देवोल ) अपनी माँ ( नफीसा अली ) के साथ कैनेडा में रहता है जिसका अपना परिवार और बच्चे है । एक दिन उसे पता चलता है कि उसके पिता धरम सिंह( धमेंद्र ) और भाई गजोधर ( बोबी देवोल )बनारस में है और लोगो को ठगने का काम करते है । इधर बनारस में गजोधर एक फोटो ग्राफर साहिबा ( कुलजीत रंघावा ) से प्यार करता है और उसे पाना चाहता है । अब पूरी फिल्म हर किरदार की चाहत को हासिल करने की कहानी बन जाती है परमवीर परिवार को एक करना चाहता है, गजोधर और साहिबा शादी करना चाहते है और धरम सिंह अपनी गलतियों की माफ़ी चाहता है । इस चाहत के बीच है साहिबा के भाई जोगिन्दर सिंह (अनुपम खैर ) और उसकी गैंग ; कुछ गुदगुदाते द्रश्य ; बहुत सी ट्रेजेडी और मसाला और बन जाती है फिल्म यमला पगला दीवाना

फिल्म का निर्देशन ठीक ठाक है। समीर कार्निक कॉमेडी की गाड़ी को हाकने में सफल रहे है फिल्म की लम्बाई कुछ ज्यादा है पर इसे नजर अंदाज़ किया जा सकता है | फिल्म के संगीत के लिए एक लंबी कड़ी ने मेहनत की है जिसमे लक्ष्मी कान्त प्यारेलाल के "मै जट यमला पगला " गीत से लेकर अनु मालिक,आर.ड़ी बी .और राहुल सेठ का नाम शामिल है । इस विविधता के करण ही "टिंकू पिया और चमकी जवानी " ज़हा आईटम नंबर है वंही "चड़ा दे रंग" और "गुरबानी" गंभीर प्रस्तुति है । अभिनय की कसोटी पर सनी देओल सब पर भारी है ;धर्मेन्द्र और बाबी का भी अच्छा काम है । अनुपम खेर अपने अनोखे अंदाज में लाजवाब लगे है वही कुलजीत रंघावा की ख़ूबसूरती का फिल्म में कोई जवाब नहीं; माँ के किरदार में नफीसा अली ने थोडा निराश किया है।

संपादन ,छायांकन, पटकथा आदी ठीक है । फिल्म में जो बनारस का घाट दिखता गया है वो म.प. का महेश्वर घाट है , जो ख़ूबसूरती के मामले में कही भी कमजोर नजर नहीं आया ; महेश्वर में फिल्माए गए कुछ द्रश्य तो इतने सुन्दर है की उन पर नजर चिपकर रह जाती है

सारांशतः यह एक हलकी फुलकी मनोरंजक फिल्म है जिसकी कॉमेडी में फूहड़ता का तड़का नहीं है इसलिए इसे पुरे परिवार के साथ बैठ कर इसे देखा जासकता है, और फिल्म में हँसते मुस्कुराते हुए कहा जा सकता है की ये जट "यमले पगले दीवाने " इती सी बात न जाने के के के ..................


आप के सुझाव के इंतजार में .....लकुलीश शर्मा

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