Saturday, August 6, 2011

ये आफिस जरा देखा- भाला है।


चला मुसद्वी आॅफिस-आॅफिस‘‘ यह शीर्षक फिल्म की पूरी कहानी बंया करने के लिए काफी है क्योकि टी.वी के प्रसिद्व सिरियल आॅफिस- आॅफिस और उसके मुसद्वी( पंकज कपूर ) को कौन नही जानता ।जब नाम से ही फिल्म की कहानी का पता चल जाए तो ऐसे हालाथ में दर्षको को सिनेमा हाॅल के अन्दर आने को मजबुर करना जरा टेड.ी खीर है और इस खीर को पकाने में निर्माता और निर्देषक राजीव मेहरा कुछ खास सफल नजर नही आए।


फिल्म की कहानी सरकारी और गैर सरकारी आॅफिस के भष्टाचार और निकम्मेपन की कलई खोलती नजर आती है धर्मस्थलो पर पडिंतो की लुट है तो अस्पताल में डाक्टरो की हर तरफ सिर्फ आम आदमी ही परेषान है और फिल्म मे यह आम आदमी है मुसद्वीलाल वह अपने दम पर इन सब से लोहा लेता है और आखरी में भष्टाचार के खिलाफ इस लड.ाई मे जीत जाता है ।


फिल्म मे सभी किरदारो का अभिनय लाजवाब है पकंज कपूर , मनोज पहवा, असावरी जोषी ने अपने स्वाभाविक अभिनय से कमाल किया है पर वही देखी हुई कहानी उस पर कमजोर निर्देषन ने पूरे 111 मिनिट तक बोर करने का काम किया है ।फिल्म जब शुरु होती है तब लगता है कि कहानी धीरे धीरे रफ्तार पकडती जाएगी पर यह कहानी तो आखिर तक लोकल टैªन की ही धीमी रहती है।


कुल मिलाकर देखा जाए तो इस फिल्म की कमी इतनी ही है कि इस कहानी को हम पहले से ही जानते है क्योकि एक तो यह , सिरियल आॅफिस- आॅफिस का फिल्मी रिमेक है और दुसरा कारण यह कि भष्टाचार हमारी रग- रग में पहले ही बसा हुआ है जिसे देखने के लिए किसी थियेटर में जाने की आवष्यकता नही ।

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