Saturday, August 13, 2011

आरक्षण -ः जाना था जापान पहुच गए चीन


आरक्षण ये नाम ही चेहरे पर शिकन या मुस्कान लाने के लिए काफी है गर आरक्षण मिलने वाला हो तो मुस्कान और छीनने वाला हो तो शिकन ।

इस सम्वेदनशील मुद्दे को अपनी फिल्म के जरिये परोसने का काम किया है निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ने

फिल्म की पृष्टभूमि भोपाल की है जहाॅ शकुंतला ठकराल महाविधालय एक प्रसिद्द महाविधालय है और प्रो. प्रभाकर (अमिताभ बच्चन वहा के प्रसिपल दीपक कुमार ( सेफ अली खान) जो कि हरिजन समुदाय से सम्बध रखता है वहाॅ का गेस्ट लेक्चरार है।पूर्वी प्रभाकर(दीपिका पादुंकोण) और सुशांत सेठ(प्रतिक बब्बर वहाॅ पढते है ।सुश्ंाात,पूर्वी,दीपक तीनो अच्छे दोस्त है।फिल्म का एक मुख्य किरदार मिथलेश सिंह (मनोज वाजपेयी भी वहीं पर पढाता है ।जिसका प्रायवेट कोचिंग इस्टीटुयुट भी है।


फिल्म की शुरुआत होती है इस मुद्दे के साथ कि प्रायवेट कम्पनी में जाति और स्तर के आधार पर चयन किया जाता है।वहीं सरकारी विभाग में कोटे के नाम पर पद बाटें जाते है। इस बात को लेकर सुशंात सेठ और दीपक दोनो को अपनी जिंदगी मे दिक्कतो का सामना करना पडता है ।इस बात के कारण दीपक आरक्षण का समर्थक बन जाता है वहीं सुशंात विरोधी ।इसी वक्त सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश पारित होता है जिसमे 27 प्रतिशत आरक्षण बढा दिया जाता है इस मुद्दंे पर सुप्रिम कोर्ट का समर्थन करने पर प्रो प्रभाकर (अमिताभ को काॅलेज से निकाल दिया जाता है और उनका धर भी उनसे छीन जाता है। बाकि कि पूरी फिल्म प्रभाकर के आत्मसम्मान और धर वापस पाने की कहानी को बंया करती नजर आती है ।


आरक्षण के साथ -साथ इस फिल्म मे शिक्षा के व्यवसायिकरण पर भी जोर दिया गया है और यह जोर इतना है कि फिल्म के 45 मिनिट बीत जाने पर फिल्म आरक्षण बनाम अनारक्षण से हटकर प्रायवेट कोचिंग बनाम सही शिक्षा व्यवस्था पर केन्द्रीत हो जाती है।

फिल्म के सशक्त पहलु में अमिताभ बच्चन सेफ अली खान और दीपिका की एक्टींग और डायलाॅग को रखा जा सकता है वही फिल्म की एडिटिंग सिनेमेटोग्राफी और टीªटमेटं कमजोर कडh है।


फिल्म की गति कई द्दश्यो में टुटती नजर आती है।वहीं सिनेमेटोग्राफी ने न तो भोपाल की खुबसुरती को परोसा है और न ही अभिनेता के अभिनय को ।फिल्म के गाने अच्छे बन पडें है और पाश्र्वसगींत ने भी अच्छी भूमिका को निभाया है पर जब गाने स्क्रिन पर दिखाई देते है तो हीरो के होटं से मेल ही नही खाते ।इन सारी बातों को नजरअदांज कर भी दिया जाए तब भी सबसे ज्यादा निराशा इस बात से होती है कि फिल्म का नाम आरक्षण है पर पूरी फिल्म शिक्षाः सेवा या व्यवसाय इस बात पर धुमती है।फिल्म में आरक्षण के मुद्दे को छुआ भर है और कुछ नही ।


प्रकाश झा ने राजनीति में भोपाल को पहले भी दिखाया था पर इस फिल्म मे पूरा परिदृश्य भोपाल केन्द्रीत है ।ऐसे में अचरज की बात है कि किसी अभिनेता के डायलाग में भोपाली टच नही है। इंतहा तो यह है कि तबेलेवाला भी युपी की टोन मे बात करता है। जबकि भोपाल की अपनी एक जबान है तरिका है जो पूरी फिल्म मे कहीं नजर नही आता।


कुल मिलाकर फिल्म मसालेदार है जिसमें सैफ अमिताभ और दीपिका के दमदार अभिनय और डायलाग का तडका है। अच्छे गीत सगींत की मजेदार करी है पर यह मसाला आरक्षण नाम की लुभावनी डिश को मजेदार नही बना पाता है ।फिल्म देख कर ऐसा लगता है कि जाना था जापान पहुच गए चीन।


No comments:

Post a Comment